Friday, April 9, 2010

पुलिस एवं उसकी आवश्यकता

पुलिस अंग्रेजी: Police, शुद्ध हिन्दी: आरक्षी या आरक्षक) एक सुरक्षा बल होता है जिसका उपयोग किसी भी देश की अन्दरूनी नागरिक सुरक्षा के लिये ठीक उसी तरह से किया जाता है जिस प्रकार किसी देश की बाहरी अनैतिक गतिविधियों से रक्षा के लिये सेना का उपयोग किया जाता है।

भारत में पुलिस का इतिहास

भारतवर्ष में पुलिस शासन के विकासक्रम में उस काल के दंडधारी को वर्तमान काल के पुलिस जन के समकक्ष माना जा सकता है। प्राचीन भारत का स्थानीय शासन मुख्यत: ग्रामीण पंचायतों पर आधारित था। मुगल काल में ग्राम के मुखिया मालगुजारी एकत्र करने, झगड़ों का निपटारा आदि करने का महत्वपूर्ण कार्य करते थे और निर्माण चौकीदारों की सहायता से ग्राम में शांति की व्यवस्था स्थापित रखे थे। उच्च श्रेणी के चौकीदार अपराध और अपराधियों के संबंध में सूचनाएँ प्राप्त करते थे और ग्राम में व्यवस्था रखने में सहायता देते थे। उनका यह भी कर्तव्य था कि एक ग्राम से दूसरे ग्राम तक यात्रियों को सुरक्षापूर्वक पहुँचा दें।

सन् 1765 में जब अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी हथिया ली तब जनता का दायित्व उनपर आया। वारेन हेस्टिंग्ज़ ने सन् 1781 तक फौजदारों और ग्रामीण पुलिस की सहायता से पुलिस शासन की रूपरेखा बनाने के प्रयोग किए और अंत में उन्हें सफल पाया।जनपदीय मजिस्ट्रेटों को आदेश दिया गया कि प्रत्येक जनपद को अनेक पुलिसक्षेत्रों में विभक्त किया जाए और प्रत्येक पुलिसक्षेत्र दारोगा नामक अधिकारी के निरीक्षण में सौंपा जाय। इस प्रकार दारोगा का उद्भव हुआ।

मूलत: वर्तमान पुलिस शासन की रूपरेखा का जन्मदाता लार्ड कार्नवालिस था। वर्तमान काल में हमारे देश में अपराधनिरोध संबंधी कार्य की इकाई, जिसका दायित्व पुलिस पर है, थाना अथवा पुलिस स्टेशन है। थाने में नियुक्त अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा इन दायित्वों का पालन होता है। सन् 1861 के पुलिस ऐक्ट के आधार पर पुलिस शासन प्रत्येक प्रदेश में स्थापित है।

प्रत्येक जनपद में सुपरिटेंडेंट पुलिस के संचालन में पुलिस कार्य करत है। सन् 1861 के ऐक्ट के अनुसार जिलाधीश को जनपद के अपराध संबंधी शासन का प्रमुख और उस रूप में जनपदीय पुलिस के कार्यों का निर्देशक माना गया है।

पुलिस के कार्य व् आवश्कता

पुलिस के मुख्यत: निम्नलिखित कार्य हैं :

(1) अपराधनिरोध एवं अपराधों का विवेचन।

(2) यातायात नियंत्रण

(3) राजनीतिक सूचनाओं का एकत्रीकरण तथा राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा।


अलग-अलग देशों की पुलिस के पास अलग प्रकार की कानूनी धारायें है और प्रत्येक धारा अलग अलग दंड घोषित करती है। अपराधनिरोध के अंतर्गत न केवल व्यक्ति एवं संपत्ति संबंधी अपराधों का निरोध होता है वरन् मादक द्रव्यों का तथा गाँजा, भाँग, अफीम, कोकीन के तस्कर व्यापार का निरोध और वेश्यावृत्ति संबंधी अधिनियम को लागू कराने की कार्यवाहियाँ भी सन्निहित हैं। यातायात संबंधी व्यवस्था स्थापन में ट्रेफिक पुलिस द्वारा नगरों में यातायात का सुनियंत्रण एवं मोटर संबंधी अधिनियमों का परिपालन कराने की कार्रवाई की जाती है।

देश में प्रादेशिक पुलिस का एक अंग, जिसे आर्म पुलिस, प्राविंशिल आर्म कांस्टेबुलरी, स्पेशल आर्म फोर्स आदि नाम विभिन्न प्रदेशों में दिए गए हैं, विशेष आशंकाजनक स्थितियों में मुख्यत: उपद्रवों के दमन के लिए प्रयुक्त होता है। सामान्य प्रशासन अथवा अपराधों की रोकथाम थानों पर नियुक्त सिविल पुलिस द्वारा की जाती है।

पुलिस देस के आधार को मजबूत बनाने का कम करती है। प्रत्यछ रूप से अपराध को खत्म कर जनता को सुरक्षा देने का कम करती है। इस प्रकार पुलिस की समाज को बहुत बड़ी जरुरत है। सुरक्षा और पुलिस एक दुसरे के लिए पूरक है।

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