जागरण 27 जुलाई 2010
लखनऊ ढाई साल में ढाई सौ से ज्यादा दागी पुलिसकर्मी निलंबित। वसूली, अपहरण, लूट या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध भी इनसे अछूता नहीं है। कायदे-कानून इनके लिए मायने नहीं रखते क्योंकि ये खाकी वर्दी पहनते हैं। कभी अपने इकबाल के लिए मशहूर यूपी पुलिस का यह बदरंग चेहरा ही अब इसकी असल पहचान है। शाहजहांपुर एटीएम कांड से फिर साबित हो गया कि मुख्यमंत्री हों या डीजीपी पुलिसकर्मियों को किसी का खौफ नहीं है। यूपी पुलिस व अपराध का नाता पुराना है। दागी पुलिसकर्मियों को फोर्स से बाहर करने के दावे कमजोर इच्छाशक्ति के आगे हवा हो गए और अपराध की बेल पुलिस महकमे की जकड़ती गई। शाहजहांपुर में रविवार को तीन सिपाहियों ने एटीएम लूट कर एक बार फिर वर्दी को दागदार किया। राजधानी के कई पुलिसकर्मियों के दामन पर भी अपराध की छींटे हैं। सनसनीखेज लूट हो या सुपारी लेकर हत्या, खाकी वर्दी वालों से कुछ नहीं बचा। और तो और 2006 में लखनऊ के गोमतीनगर से प्रापर्टी डीलर लोकनाथ के अपहरण में सीओ स्तर के अधिकारी तक की भूमिका सामने आयी। निचले स्तर के पुलिसकर्मियों में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति के लिए बड़े अफसर भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। बीते दिनों गोमतीनगर में एक पुलिस अधिकारी ने कानून का पालन करने पर ट्रैफिक के एक दारोगा के साथ जिस तरह का बर्ताव किया वह जग जाहिर है। बाराबंकी के किसान से नारकोटिक्स विभाग के अधीक्षक का रिश्र्वत लेना भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता का कहना है कि ऐसे हालात में काफी सुधार की जरूरत है। पुलिसकर्मियों को फर्ज को ध्यान में रखकर काम करना चाहिये। वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस तरह की घटनाएं रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई वर्ष 2008-निलंबित हुए 224, बर्खास्त 24, वर्ष 2009-निलंबित हुए 27, बर्खास्त छह, वर्ष 2010 में अब तक नौ पुलिसकर्मी निलंबित क्या हैं मामले नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी, व्यवसायीयों से वसूली, ठेके पर हत्या कराने, राजमार्गो पर वसूली, अपराधी पर कार्रवाई न करने आदि को लेकर पुलिसकर्मियों पर आरोप हैं। लखनऊ के आशियाना इलाके में तो क्राइम ब्रांच ने ही व्यवसायी से सोना लूट लिया।
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